अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है. भारतीय बाजार में लगातार बिकवाली और फंड आउटफ्लो के बाद एक और कारण है जिससे भारतीय रुपये के रसातल में जाने का सिलसिला जारी रहने की आशंका है. दरअसल अमेरिकी चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद आने वाले महीनों में अमेरिकी करेंसी डॉलर के और चढ़ने का अनुमान है.
ऐसा हुआ तो भारतीय रुपये के लिए नीचे जाने का डर लगातार बना रहेगा और ये अधिक निचले लेवल तक गिर सकता है. आज रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 84.3625 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया।
अमेरिकी चुनाव परिणाम के कारण डॉलर इस उम्मीद पर बढ़ गया है कि ट्रम्प की नीतियां अमेरिकी विकास को बढ़ावा देंगी जबकि एशियाई मुद्राओं में बिकवाली हुई है
भारतीय रुपये मे कमज़ोरी आई तो…….
रुपये की कमजोरी के साथ भारत के लिए नई परेशानियों के दरवाजे खुलने का डर रहता है. डॉलर के मजबूत होने का मतलब है कि सीधा-सीधा भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जाएगा. उदाहरण के
लिए जिस सामान को खरीदने पर अक्टूबर में 1 डॉलर के लिए 83 रुपये देने होते थे वहीं अब ये रकम 84.35 रुपये की हो जाएगी. भारत विदेशों से सबसे ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है
और इसको खरीदने के लिए ज्यादा राशि खर्च करनी पड़ेगी क्योंकि डॉलर महंगा हो गया है.
कच्चा तेल महँगा हुआ तो…..
क्रूड ऑयल के महंगा होने से भारत को इसके इंपोर्ट पर ज्यादा खर्च करना होगा जिसके परिणामस्वरूप देश में कई सामानों के दाम महंगे होंगे.
इकोनॉमी पर डॉलर के महंगा होने का असर आएगा क्योंकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार जो 700 बिलियन डॉलर के करीब जा चुका है, उसमें कमी देखी जा सकती है.
क्रूड के महंगा होने का असर पेट्रोल-डीजल के रेट पर भी आ सकता है, क्योंकि ये ट्रांसपोर्ट फ्यूल के लिए कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होता है.